दीवाली – परम्पराएँ एवं पर्यावरण

अंधकार पर प्रकाश,अज्ञान पर ज्ञान एवं असत्य पर सत्य की विजय का यह महापर्व दीपोत्सव समाज में उत्साह, उमंग, उल्लास,  बंधुत्व एवं प्यार  फैलाता है। सामूहिक एवं व्यक्तिगत दोनों ही प्रकार  से मनाए जाने वाला यह  त्यौहार धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक महत्व रखता है। दीपमाला  हमारे अंदर के अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करने के लिय्रे  ज्ञान रूपी  दीपक  जलाने का सन्देश देती  है जिससे कि मानव मात्र का जीवन रोशन हो सके |

      मनोवैज्ञानिक डॉ. जॉयस ब्रदर्स के अनुसार उत्सव का अर्थ शाही पार्टियों,  कपड़ों, गहनों, तथा पटाखों तक सीमित नहीं है . उत्सव का मतलब खुशी से है. जो कि जरुरी नहीं है धूम धड़ाके और धन खर्च कर मिले . दरअसल उत्सव वे परम्पराएँ है , जो व्यक्ति के आतंरिक उद्देश्यों की पूर्ति करते है. इन परम्पराओं का दोहराव हमें एक दूसरे के करीब ले आता है और समाज के प्रति हमें और जिम्मेदार बनाता है .

    अब हमें सोचना होगा , सोचना ही नहीं सोचकर बदलाव लाना होगा, क्या इस दीवाली जो हम उत्सव मनाने जा रहे है , हमारे आतंरिक उद्देश्यों की पूर्ति कर रहा है. क्या पटाखों के धूम धडाको तथा उल जलूल खर्च से हमें वास्तविक खुशी मिलेगी. क्या इस उत्सव को मना कर हम समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन कर पाएंगे. शायद अंतर्मन के किसी कोने से आवाज आयेगी .......... नहीं
   खूब खर्च किया, खूब सारे पटाखे जलाये पर मन में कसक रही तो कैसा उत्सव ..... कैसी दीवाली.......
   आइये इस दीवाली मैं आपको दीपोत्सव के उन हिस्सों की  सैर कराता हूँ..... जिनसे  हम जान कर भी अनजान है  ....... हमने दीवाली का वो पारंपरिक स्वरुप त्याग ही दिया है, जिसमें हम दियो व मोमबत्ती से रोशनी कर पूजा अर्चना के बाद छोटे छोटे समूहों में इकठ्ठा हो त्यौहार  मनाते थे. आज दीवाली के नाम पर ढेर सारा धुंआ व शोर देने  वाले पटाखे, विद्युत बल्बों से रोशनी, तथा बिना जरुरत की खरीददारी होती है. आइये आज के दीवाली मनाने के स्वरूप पर विचार करे कि इससे हमें व हमारे समाज को क्या मिल रहा है. पहले बात करे पटाखों की.. क्या आपने कभी सोचा है हजारों रुपये के पटाखे जलाकर क्या मिलता है, थोड़ी सी भय मिश्रित क्षणिक खुशी एवं ढेर सारा ध्वनि एवं वायु प्रदुषण.प्रदुषण जो माँ वसुन्धरा के सीने को छलनी कर देता है..                                            
    क्या कभी सोचा है पटाखे जलाने से छोटे बच्चों ,वृद्ध जनों ,गर्भवती महिलाओं व रोगियों पर क्या प्रभाव पडता है. जाने कैसी-कैसी पीडाएं झेलते है ये लोग.
    एक अस्थमा के रोगी की दीवाली का हाल तो पूछो  वो अस्थमा के अटैक के कारण  दीवाली की रात ही नहीं उसके बाद कि ना जाने कितनी रातों को चैन से सो नहीं पाता  
   सबसे पहले ध्वनि प्रदुषण की  बात करे ... केंद्रीय प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों के अनुसार एक आवासीय क्षेत्र में 55 डेसिबल से अधिक की ध्वनि तीव्रता ध्वनि प्रदुषण की श्रेणी में आती है. एक साधारण लक्ष्मी बम 100 डेसिबल से अधिक की ध्वनि पैदा करता है अन्य बम व पटाखों की बात ही छोड दो. अब सोचिये यह शोर छोटे बच्चों ,वृद्ध जनों ,गर्भवती महिलाओं व रोगियों पर क्या प्रभाव डालता होगा . रिपोर्टों के अनुसार दीवाली के पटाखों की आवाज से सैकड़ों लोग अपने सुनने की शक्ति हमेशा के लिए खो देते है. उनसे पूछिए दीवाली के उपहार में उन्हें यह क्या मिला जीवन भर का बहरापन .
    रोजाना आपके इर्दगिर्द चहचहाने वाले पक्षियों की तो पटाखों  की आवाज से जान पर बन आती है, वो बेचारे अपने नीड छोड पटाखों  की आवाज से दूर शरण ले कर जैसे तैसे अपनी जान बचाते है.
   आइये अब वायु / रासायनिक प्रदुषण की  चर्चा करे विभिन्न प्रकार के पटाखे जलाने से निकलने वाले हानिकारक रसायनों व उनके मानव शरीर पर पडने वाले प्रभावों पर एक नज़र डालते है .
·        कॉपर  यह श्वसन नली में जलन एवं स्थायी विकृति पैदा करता है .
  • केडमियम यह रक्त की आक्सीजन संवहन क्षमता घटा कर एनीमिया रोग पैदा करता है. साथ ही किडनी को भी क्षति पहुंचाता है.
  • सीसा    तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने के साथ फेफड़ों व किडनी में केंसर पैदा करता है.
  • मेग्नीसियम श्वास के साथ अंदर जाने पर केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभवित करने के साथ धातु धूम्र बुखार उत्पन्न करता है.
  • मेग्नीज यह एक केंसरकारक एवं उत्परिवर्तनकारक है.
  • जिंक त्वचा में जलन तथा श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है
  • नाईट्रेट्स - अधिक मात्रा में शरीर में प्रवेश करने पर पेट दर्द, उल्टी, खुनी दस्त, अत्यधिक कमजोरी आदि रोग पैदा करते है . कभी-कभी इनकी अधिकता से मौत भी हो जाती है.
  • नाईट्राइट इनकी अधिकता से जी-घबराना, उल्टी आदि कि समस्या होती है. व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है. बारबार कम मात्रा में इनके शरीर में जाने पर सिर दर्द, आँखों में धुंधलापन तथा रक्तचाप में कमी आदि समस्याएं पैदा होती है.
  • गंधक सल्फर डाइ ऑक्साइड/सल्फेट के रूप में- श्वास के साथ शरीर में प्रवेश करने वाला यह ज़हर आँख ,त्वचा व श्लेष्मा झिल्ली में जलन पैदा कर उन्हें  क्षतिग्रस्त करता है तथा श्वसन तंत्र को बहुत ज्यादा क्षति पहुंचाता है .

     ये तो कुछ एक उदाहरण है . इनके अलावा उपरोक्त रसायनों के कारण अनेकों व्याधियाँ पैदा होती है एवं और भी अनेकों विषेले रसायन पटाखों से निकलते  है जो धरती माँ को प्रदूषित कर केवल मानव को ही नहीं अन्य जीवधारियों को भी प्रभावित करते है. और तो और इनका असर दीवाली तक ही सीमित नहीं है, दीवाली के बाद भी लंबे समय तक बना रहता है.
   ये तो हुई प्रदुषण कि बात ....अब बात करे रोशनी की - विद्युत द्वारा भारी मात्रा में रोशनी करने से  बिज़ली का कितना अपव्यय होता है यह बताने कि आवश्यकता नहीं है. थोडा सा सोचे की विद्युत उत्पादन तो सीमित ही है ना.
  अब आप सोच रहे होंगे खरीददारी से भला क्या फरक पड़ेगा. हमारी पृथ्वी पर मानव द्वारा निर्मित प्रत्येक वस्तु बनी हुई तो प्राकृतिक पदार्थों से ही है. अब बिना जरूरत का खरीदेंगे  तो धन के अपव्यय के साथ प्राकृतिक संसाधनों का अनावश्यक दोहन होगा और वे समय से पहले ही समाप्त हो जायेंगे .

    अब सोचिये आप कैसी दीवाली मनाना चाहेंगे . वैसी जो मनाते आये है... या ऐसी जिससे आपको मन की संतुष्टि मिले ...आइयें इस बार दीवाली का उत्सव मिल कर मनाये जिसमे पटाखों का शोर ना हो, घर पर दियो व मोमबत्ती की रोशनी हो , बिना जरूरत कि कोई भी चीज़ खरीदने पर धन खर्च ना हो  ...तथा जो धन आप बचाएं  उसका कुछ हिस्सा ही सही गरीबों व जरूरत मंदों की जरूरतों को पूरा करने पर खर्च हो . मैं दावे के साथ कह सकता हू यही होगा सही मायने में दीपोत्सव जिससे हमारे अंतर्मन को तो खुशी मिलेगी ही , समाज से नजदीकी का अहसाश भी होगा ..... थोडा सा ही सही धरती माँ का क़र्ज़ शायद हम उतार सकेंगे.....
       
तो कहिये * पटाखों को ना, जिन्दंगी को हाँ *






Comments

  1. बहुत सही बात कही है|

    ReplyDelete
  2. bhutta chabbaao baithikar
    naagaooree naake kaa paar
    ee na bolau zindzgi
    hai achchhee yaa bekaar

    ReplyDelete
  3. Bilkul sahi kaha aapne...

    ise bhi jara paden...
    http://tum-suman.blogspot.com/

    Dhanyabaad

    ReplyDelete
  4. उत्साहवर्धन के लिए आप सभी का धन्यवाद .

    ReplyDelete
  5. लेखन अपने आपमें रचनाधर्मिता का परिचायक है. लिखना जारी रखें, बेशक कोई समर्थन करे या नहीं!

    बिना आलोचना के भी लिखने का मजा नहीं!

    यदि समय हो तो आप निम्न ब्लॉग पर लीक से हटकर एक लेख

    "आपने पुलिस के लिए क्या किया है?"

    पढ़ सकते है.

    http://baasvoice.blogspot.com/
    Thanks.

    ReplyDelete
  6. Absolutly ryt sir..bt aajkal ye sab baatein sochta kaun hai..!!!!

    ReplyDelete
  7. HAMARE KAANO ME TO ABHI TAK AAPKI AAWAZ K DHAMAKE GOONJ RAHE HAI !

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

अयोध्या ......

अपना देश